शुक्रवार 8 अगस्त 2025 - 23:50
हिज़्बुल्लाह को निशस्त्र करने की योजना नाकामी की दलील है

हौज़ा / इमाम ए जुमआ कहक ने कहा,हिज़्बुल्लाह को हथियारों से बेदस्त करने की योजना दरअसल अमेरिका की उस पेशकश का हिस्सा है जिसे अमेरिका के ख़ास नुमाइंदे टॉम बाराक ने लेबनान की हुकूमत को पेश किया था और यह योजना नाकाम होने के लिए ही बनी है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इमाम ए जुमआ कहक ने कहा,हिज़्बुल्लाह को हथियारों से बेदस्त करने की योजना दरअसल अमेरिका की उस पेशकश का हिस्सा है जिसे अमेरिका के ख़ास नुमाइंदे टॉम बाराक ने लेबनान की हुकूमत को पेश किया था और यह योजना नाकाम होने के लिए ही बनी है।

उन्होंने जुमआ के ख़ुत्बे में सहिफ़ा सज्जादिया की दुआ नंबर 9 की एक फिकरा की तशरीह करते हुए इरशाद फ़रमाया,इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अ.स.) फरमाते हैं:
"मَا أَنَا بِأَعْصَی مَنْ عَصَاکَ فَغَفَرْتَ لَهُ، وَ مَا أَنَا بِأَلْوَمِ مَنِ اعْتَذَرَ إِلَیْکَ فَقَبِلْتَ مِنْهُ، وَ مَا أَنَا بِأَظْلَمِ مَنْ تَابَ إِلَیْکَ فَعُدْتَ عَلَیْهِ"
[ऐ ख़ुदा!] मैं उन सबसे ज़्यादा गुनहगार नहीं हूँ जिन्हें तूने बख़्श दिया, न मैं उनसे ज़्यादा मलामत के क़ाबिल हूँ जिन्होंने तुझसे माफ़ी माँगी और तूने उनकी माफ़ी क़बूल की, और न ही मैं उन सबसे ज़्यादा ज़ालिम हूँ जिन्होंने तौबा की और तूने उनकी तौबा को क़बूल फरमाया।

दूसरे ख़ुत्बे की शुरुआत में उन्होंने नमाज़ियों को तक़वा की वसीयत करते हुए कहा,तक़वा ही वह शर्त है जिससे इंसानी आमाल क़बूल होते हैं और इंसानी किरदार को अज़मत मिलती है।
इमाम सज्जाद (अ) फरमाते हैं जो अमल तक़वा के साथ हो, वो कभी थोड़ा नहीं होता। जिस चीज़ को खुदा क़बूल करे, वो कैसे कमतर हो सकती है?
"لَا یَقِلُّ عَمَلٌ مَعَ تَقْوَی، وَ كَیْفَ یَقِلُّ مَا یُتَقَبَّلُ؟

इसके बाद, उन्होंने लेबनानी काबीना की उस मंज़ूरी की सख़्त मुज़म्मत की जिसमें हिज़्बुल्लाह को हथियारों से बेदस्त करने की बात कही गई है।

उन्होंने कहा,ये अमरीकी ज़ुल्म और साज़िश का हिस्सा है, जो हमेशा धमकी और लालच के ज़रिए अपनी सियासत दूसरों पर थोपता है। मगर अस्ल ताक़त क़ौमों के पास होती है, और जब क़ौमें इरादा कर लें तो अपने दुश्मनों को नाकाम बना सकती हैं।

उन्होंने 18 अगस्त (रोज़े शुहदाए मदाफ़े हरम) की याद में कहा,मदाफ़े हरम के शहीदों का हम पर बहुत बड़ा हक़ है। उन्होंने न सिर्फ़ हमारे वतन बल्कि पूरे इलाक़े की क़ौमों और अहलेबैत (अ.स.) के मुक़द्दस हरमों को दहशतगर्दों और इसतकबारी अजेंडों से बचाया।"

आख़िर में उन्होंने क़रीब आने वाले अरबईन हुसैनी (अ.स.) और अरबईन की पैदल ज़ियारत की अहमियत पर रौशनी डालते हुए कहा,अरबईन की ये पैदल रवानी दरअसल सालाना एक आलमी मिलीयन मर्च है जो इस बात का एलान है कि हम हुसैनी मक़ासिद के साथ ताजदीदे अहद करते हैं मक़ासिद जैसे: ज़ुल्म के खिलाफ़ उठ खड़े होना, शहादत को गले लगाना और हक़ के लिए क़ुर्बानी देना।

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